म्यूचुअल फंड क्या होता है | 30 प्रकार के म्यूच्यूअल फंड्स में से अच्छा फण्ड कैसे चुनें

म्यूचुअल फंड क्या होता है

नमस्कार, आपने टेलीविज़न में बहुत बार यह विग्न्यापन जरूर देखा होगा की ” म्यूच्यूअल फण्ड सही है ” और आपके मन में यह सवाल भी आया होगा की म्युचुअल फण्ड क्या होता है और पैसा बढ़ाने के लिए इसे फिक्स डिपॉजिट से अच्छा क्यों कहा जाता है, और क्या इसमें निवेश करना सही है या यह जीखीम भरा हो सकता है। इस आर्टिकल में हमने आपके इन्ही सारे सवालों को दूर करने की कोसिस किया है तो इसे जरूर आखिर तक पढ़ें।

विषय सूचि ➤

म्युचुअल फण्ड क्या होता है ?

एक म्युचुअल फण्ड का मतलव एक प्रकार का ट्रस्ट होता है जो लोगों से पैसे लेते हैं और उन पैसों को कई जगहों पर निवेश करते हैं जैसे की स्टॉक मार्केट, सरकारी बॉन्ड्स, गोल्ड और कमोडिटी आदि।

म्युचुअल फंड में निवेश किये गए धन राशि को एक फण्ड मैनेजर के द्वारा मैनेज किया जाता है जिनका पूंजी निवेश के क्षेत्र में कई सालों का अनुभब होता है, जिससे वो लोग जिन्हे निवेश के वारे में ज्यादा कुछ नहीं पता वो इन म्युचुअल फंड्स में अपना पूंजी डालके इन प्रोफेशनल लोगों के द्वारा अपना धन राशि का निवेश करवा सकते हैं।

म्युचुअल फण्ड से जुड़े हुए 8 महत्वपूर्ण टर्म्स

  1. एसेट मैनेजमेंट कंपनी (AMC)
  2. यूनिट (Unit)
  3. एसेट्स अंडर मैनेजमेंट (AUM)
  4. नेट एसेट वैल्यू (NAV)
  5. व्यय अनुपात यानि एक्सपेंस रेशियो
  6. SIP
  7. SWP
  8. STP

एसेट मैनेजमेंट कंपनी (AMC)

AMC का फुलफॉर्म Asset Management Company होता है और म्यूच्यूअल फंड्स भी एसेट मैनेजमेंट कंपनी होते हैं जो की SEBI के अंतर्गत रजिस्टर हुए होते हैं।

यूनिट (Unit)

म्युचुअल फंड में एक यूनिट का मतलव फंड के एक हिस्से को दर्शाता है जो फंड में निवेशक की हिस्सेदारी का प्रतिनिधित्व करता है। जब कोई निवेशक म्यूचुअल फंड में शेयर खरीदता है, तो वह फंड की यूनिट्स को खरीद रहा होता है। एक निवेशक द्वारा ख़रीदे हुए यूनिट्स की संख्या फंड में उनके ओनरशिप का प्रतिशत और फंड की एसेट्स और आय में उनके आनुपातिक हिस्से का निर्धारण करेगी। म्युचुअल फंड में एक यूनिट का मूल्य फंड के शुद्ध संपत्ति मूल्य (NAV) द्वारा निर्धारित किया जाता है।

एसेट्स अंडर मैनेजमेंट (AUM)

एसेट्स अंडर मैनेजमेंट (AUM) एक म्यूचुअल फंड की संपत्ति/पूंजी का समग्र बाजार मूल्य है। फंड मैनेजर इन संपत्तियों का प्रबंधन करता है और निवेशकों की ओर से निवेश संबंधी सभी निर्णय लेता है। AUM किसी दिए गए फंड हाउस के आकार और सफलता का सूचक होता है। आप विभिन्न समयसीमाओं और अन्य समान म्यूच्यूअल फण्ड योजनाओं के साथ प्रदर्शन के तहत एसेट्स अंडर मैनेजमेंट (AUM) की आसानी से तुलना कर सकते हैं।

नेट एसेट वैल्यू (NAV)

नेट एसेट वैल्यू (NAV) किसी विशेष म्यूचुअल फंड के लिए प्रति शेयर बाजार मूल्य को दर्शाता है। इसकी गणना शेयरों की संख्या से विभाजित कुल एसेट के मूल्य से लिएबिलिटीज़ को घटाकर की जाती है। किसी को प्रति यूनिट की प्राइस निकाल ने के लिए म्यूच्यूअल फण्ड के पोर्टफोलियो के कुल बाजार मूल्य को फण्ड यूनिट नंबर से डिवाइड करना पड़ता है।

ज्यादातर समय, म्यूचुअल फंड की यूनिट की लागत 10 रुपये से शुरू होती है और जैसे-जैसे फंड के अंदर संपत्ति बढ़ती जाती है वैसे ही यूनिट का मूल्य भी बढ़ता जाता है। इस नियम के अनुसार, म्युचुअल फंड जितना अधिक लोकप्रिय होता है, उसका NAV उतना ही अधिक होता है।

ओपन-एंड फंड्स के मामले में किसी संपत्ति का शुद्ध मूल्य (NAV) सबसे अधिक उपयोग किया जाता है। इन निवेशों में, शेयर होल्डर्स के बीच ब्याज और शेयरों का कारोबार नहीं होता है। NAV एक संदर्भ मूल्य प्रदान करके किसी व्यक्ति को यह निर्धारित करने में मदद करता है कि उसे किस निवेश को निकाल ने या अपने पोर्टफोलियो में रखने का विकल्प चुनना चाहिए।

व्यय अनुपात यानि एक्सपेंस रेशियो

एक्सपेंस रेशियो का मतलव वह प्रतिशत होता है जो आपके निवेश को प्रबंधित करने के लिए शुल्क के रूप में AMC को भुगतान की जाने वाली राशि को दर्शाता है। दूसरे शब्दों में, यह म्यूचुअल फंड को चलाने और प्रबंधित करने की प्रति यूनिट की लागत होता है। व्यय अनुपात यानि एक्सपेंस रेशियो एक म्यूचुअल फंड से दूसरे में भिन्न होता है। आप इस व्यय अनुपात के लिए अलग से भुगतान नहीं करते हैं; इसकी गणना दैनिक निवेश मूल्य के प्रतिशत के रूप में की जाती है।

एंट्री और एग्जिट लोड

म्युचुअल फंड जिसमें आपको खरीद पर लोड का भुगतान करने की आवश्यकता होती है, उन्हें एंट्री लोड कहा जाता है और जब आपको बिक्री पर लोड का भुगतान करना पड़ता है, उन्हें एग्जिट लोड कहा जाता है।

SIP

SIP का फुलफॉर्म है Systematic Investment Plan. यह म्युचुअल फंड द्वारा प्रदान किया जाने वाला एक निवेश का तरीका है, जिसमें एक बार में लंपसम निवेश करने के बजाय नियमित अंतराल पर म्युचुअल फंड योजना में एक निश्चित राशि का निवेश कर सकते हैं- जैसे महीने में एक बार या तिमाही में एक बार पर किया जा सकता है।

इसकी किस्त राशि INR 500 प्रति माह जितनी कम हो सकती है। यह बहुत ही सुविधाजनक है क्योंकि आप हर महीने राशि डेबिट करने के लिए अपने बैंक को स्थायी निर्देश दे सकते हैं जिससे पैसे का अमाउंट अपने आप बैंक से हर महीने म्यूचुअल फंड में निवेश हो जाएगा जिससे निवेश में डिसिप्लिन बना रहता है।

SWP

SWP का फुलफॉर्म है Systematic Withdrawal Plan. और SIP के उलट यह निवेशकों को हर महीने अपने म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो अमाउंट में से कुछ हिस्सा अपने बैंक खाता में ट्रांसफर करने का सुविधा प्रदान करता है, जो की ज्यादातर वृद्ध लोगों के काम आता है क्योंकि हर महीने गुजारा के लिए पूंजी का कुछ हिस्सा बैंक अकाउंट में पहंच जाता है ।

STP

STP का फुलफॉर्म है Systematic Transfer Plan. यह निवेशकों को अपने पोर्टफोलियो को एक योजना से दूसरी योजना में तुरंत और बिना किसी परेशानी के स्थानांतरित करने की अनुमति देता है। यह हस्तांतरण समय-समय पर होता है, जिससे निवेशकों को उच्च रिटर्न की पेशकश करने पर प्रतिभूतियों में बदलाव करके लाभ प्राप्त करने में मदद मिलती है। यह बाजार में उतार-चढ़ाव के दौरान निवेशकों के इंटरेस्ट्स की रक्षा करता है, ताकि होने वाले नुकसान को कम किया जा सके।

म्युचुअल फण्ड कितने प्रकार के होते हैं ?

संरचना, एसेट क्लास और निवेश के लक्ष्यों के आधार पर म्यूचुअल फंड्स के कई प्रकार मार्केट में मौजूद हैं और उनमें से कुछ प्रमुख प्रकार के म्यूचुअल फंड्स के बारे में जानेंगे।

म्यूचुअल फंड्स के प्रकार

संरचना पर आधारित

संरचना के आधार पर म्यूच्यूअल फंड्स 3 प्रकार के होते हैं :

  1. ओपन एंडेड फंड्स (Open Ended Funds)
  2. क्लोज्ड एंडेड फंड्स (Closed Ended Funds)
  3. इंटरवल फंड्स (Interval Funds)

ओपन एंडेड फंड्स (Open Ended Funds)

ओपन-एंडेड फंड में कोई विशेष बाधा नहीं होती है जैसे कि एक विशिष्ट अवधि या यूनिट्स की संख्या जिनका कारोबार किया जा सकता है। ये फंड निवेशकों को अपनी सुविधानुसार फंडों में ट्रेड करने और प्रचलित नेट एसेट वैल्यू (NAV) पर आवश्यकता पड़ने पर बाहर निकलने की अनुमति देते हैं। यही एकमात्र कारण है कि यूनिट्स की पूंजी लगातार नई एंट्री और एग्जिट के साथ बदलती रहती है। एक ओपन एंडेड फंड में यदि वे नहीं चाहते हैं तो नए निवेशकों को लेने से रोकने का फैसला भी कर सकते है, या महत्वपूर्ण फंड का प्रबंधन नहीं कर सकते हैं।

क्लोज-एंड फंड्स के विपरीत, ओपन-एंड फंड्स में यूनिट्स की निश्चित संख्या बकाया नहीं होती है, और निवेशक की मांग को पूरा करने के लिए नए शेयरों को बनाया या रिडीम किया जा सकता है। यह यूनिट्स को खरीदने और बेचने में अधिक लचीलेपन की सुबिधा देता है, और ओपन-एंड फंड्स को क्लोज-एंड फंड्स की तुलना में अधिक लिक्विड बनाता है

इसके अतिरिक्त, ओपन-एंड फंड्स में आमतौर पर क्लोज-एंड फंड्स की तुलना में कम प्रबंधन शुल्क होता है, जिससे वे कई निवेशकों के लिए अधिक लागत प्रभावी निवेश विकल्प बन जाते हैं।

क्लोज्ड एंडेड फंड्स (Closed Ended Funds)

एक क्लोज-एंड फंड एक प्रकार का म्यूचुअल फंड है जो NFO (New Fund ऑफर) के द्वारा जारी किये जाते हैं, जिसमें निश्चित संख्या में यूनिट्स होते हैं जो स्टॉक एक्सचेंज पर स्टॉक की तरह कारोबार करते हैं। इसका मतलब यह है कि ओपन-एंडेड म्यूचुअल फंडों के विपरीत, क्लोज-एंड फंड्स लगातार नए यूनिट्स जारी नहीं करते हैं या बकाया शेयरों को रिडीम नहीं करते हैं, और बकाया यूनिट्स की संख्या स्थिर रहती है। फंड के शेयर स्टॉक एक्सचेंज में निवेशकों द्वारा खरीदे और बेचे जाते हैं, और उनका मूल्य आपूर्ति और मांग से निर्धारित होता है।

क्लोज-एंड फंड आमतौर पर स्टॉक, बॉन्ड और रियल एस्टेट जैसे प्रतिभूतियों के विविध पोर्टफोलियो में निवेश करते हैं, और रिटर्न बढ़ाने के लिए लीवरेज का उपयोग कर सकते हैं।

क्लोज-एंड फंड्स और ओपन-एंड फंड्स के बीच मुख्य अंतर यह है कि क्लोज-एंड फंड्स अपने नेट एसेट वैल्यू (NAV) के प्रीमियम या डिस्काउंट पर ट्रेड कर सकते हैं। इसका मतलब यह है कि आपूर्ति और मांग के आधार पर फंड के शेयरों का बाजार मूल्य NAV से अधिक या कम हो सकता है। इसके अतिरिक्त, क्लोज-एंड फंड्स में ओपन-एंड फंड्स की तुलना में अधिक प्रबंधन शुल्क होता है।

इंटरवल फंड्स (Interval Funds)

इंटरवल म्युचुअल फंड में ओपन-एंडेड और क्लोज-एंडेड फंड दोनों के लक्षण होते हैं। ये फंड केवल फंड हाउस द्वारा तय किए गए विशिष्ट अंतराल के दौरान खरीद या रिडीम के लिए खुले होते हैं और बाकी समय बंद रहते हैं। साथ ही इन फंड्स में कम से कम दो वर्षों के लिए किसी भी लेनदेन की अनुमति नहीं दी जाती है । ये फंड उन निवेशकों के लिए उपयुक्त हैं जो 3-12 महीनों में एक छोटी अवधि के वित्तीय लक्ष्य के लिए लम्पसम धन राशि बचाना चाहते हैं।

एक क्लोज्ड एंडेड फण्ड के तरह ही ओपन एंडेड फंड्स के भी निश्चित संख्या में यूनिट्स होते हैं मगर यह स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड नहीं होते हैं। रिटर्न बढ़ाने इंटरवल म्युचुअल फंड्स में भी अपने पोर्टफोलियो को अलग अलग क्षेत्रों में निवेश करते हैं जिससे ओपन एंडेड फंड्स के मुकावले इनका एक्सपेंस रेश्यो ज्यादा होता है।

एसेट्स के प्रकार पर आधारित

इक्विटी फंड्स

इक्विटी फंड का मतलव एक प्रकार का म्यूचुअल फंड है जो मुख्य रूप से शेयरों में निवेश करता है, जिसे इक्विटी भी कहा जाता है। एक इक्विटी म्यूचुअल फंड का मूल्य उसके पास मौजूद शेयरों के मूल्य से निर्धारित होता है। इन फंडों का प्रबंधन पेशेवर फंड मैनेजरों द्वारा किया जाता है, जिनका उद्देश्य शेयरों के विविध पोर्टफोलियो में निवेश करके निवेशकों को अच्छी रिटर्न कमा के देना है। इक्विटी म्युचुअल फंड को बॉन्ड फंड की तुलना में अधिक जोखिम वाला माना जाता है, लेकिन इसमें अच्छी रिटर्न की सम्भावना भी होती है।

शेयर बाजार में स्थित अलग अलग क्षेत्र के कंपनियों में निवेश के आधार पर इक्विटी फंड्स के भी कुछ प्रकार होते हैं जैसे की :

  1. लार्ज कैप फंड्स : लार्ज-कैप म्युचुअल फंड एक प्रकार के ओपन-एंडेड इक्विटी स्कीम होते है जिसमें फण्ड का कम से कम 80% पूंजी लार्ज-कैप कंपनियों के शेयरों में निवेश होता है। इन्हें ब्लू चिप फंड्स भी कहा जाता है। लार्ज-कैप म्युचुअल फंड की राशि को स्टेबल कंपनियों में निवेश किया जाता है, जिनका स्थापित संचालन के साथ मजबूत वित्तीय प्रदर्शन का लंबा ट्रैक रिकॉर्ड होता है।
  2. मिड कैप फंड्स : मिड कैप फंड्स भी एक प्रकार के ओपन एंडेड म्यूच्यूअल फंड्स होते हैं जिनमें पूंजी का कम से कम 65% हिस्सा मिड कैप कंपनियों के शेयर में निवेश किया जाता है। मिड-कैप म्युचुअल फंड उच्च रिटर्न प्रदान करते हैं, लेकिन मिडकैप कंपनियों में निवेश के कारण जोखिम भी अधिक होता है।
  3. स्माल कैप फंड्स : जैसे की नाम से पता चलता है की इन म्यूच्यूअल फंड्स में पूंजी का ज्यादातर हिस्सा स्माल कैप कंपनियों के शेयर में निवेश किये जाते हैं। स्माल कैप कंपनियों का भविष्य में बढ़ने के आसार सबसे ज्यादा होते हैं इसीलिए उनके पास उच्चतम रिटर्न उत्पन्न करने की क्षमता होती है लेकिन इनमें निवेश करने में सबसे ज्यादा जोखिम भी होता है।
  4. लार्ज और मिड कैप फंड्स : लार्ज और मिड कैप म्यूच्यूअल फंड्स में दोनों ही लार्ज कैप और स्माल कैप कंपनियों में निवेश किया जाता है जिससे अच्छा रिटर्न भी मिल जाता है और थोड़ा रिस्क भी घट जाता है। इनमें पूंजी का कम से कम 35% हिस्सा लार्ज कैप और 35% हिस्सा मिड कैप कंपनियों में निवेश किया जाता है।
  5. मल्टी कैप फंड्स : मल्टी-कैप फंड एक प्रकार के ओपन-एंडेड इक्विटी म्यूच्यूअल फण्ड स्कीम है जो लार्ज-कैप, मिड-कैप और स्मॉल-कैप कंपनियों के शेयरों में निवेश करती है। ओपन-एंडेड फण्ड का मतलब है कि म्यूचुअल फंड की कोई निश्चित परिपक्वता अवधि नहीं होती है।
  6. सेक्टर म्यूच्यूअल फंड्स : यह एक प्रकार के ओपन म्यूच्यूअल फंड्स होते हैं जिनमें बिशेष रूप से कोई सेक्टर के कंपनियों निवेश किया जाता है जैसे की IT कंपनियां, बैंक या फार्मा आदि। उदाहरण के तौर पर Tata Banking and Financial Services Fund जो सिर्फ बैंक सेक्टर में निवेश करता है।

डेट म्यूच्यूअल फंड्स

डेट म्यूचुअल फंड मुख्य रूप से फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटीज जैसे बॉन्ड, ट्रेजरी बिल और कमर्शियल पेपर में निवेश करता है। ये फंड आमतौर पर इक्विटी फंड की तुलना में कम रिटर्न देते हैं, लेकिन इनमें जोखिम भी कम होता है। वे उन लोगों के लिए एक अच्छा निवेश विकल्प हो सकते हैं जो स्टेबल और नियमित आय के स्रोत की तलाश कर रहे हैं या इक्विटी और डेट निवेश दोनों के मिश्रण को शामिल करके अपने पोर्टफोलियो में विविधता लाना चाहते हैं।

डेट फंड्स में भी कई प्रकार होते हैं जैसे की :

  1. गवर्नमेंट सिक्योरिटीज फंड : ये फंड मुख्य रूप से सरकारी बॉन्ड और ट्रेजरी बिल में निवेश करते हैं, जो कम जोखिम और मध्यम रिटर्न देते हैं।
  2. कॉरपोरेट बॉन्ड फंड्स : ये फंड्स कॉरपोरेशन द्वारा जारी किए गए बॉन्ड्स में निवेश करते हैं। वे आम तौर पर सरकारी प्रतिभूति फंडों की तुलना में अधिक रिटर्न देते हैं लेकिन उच्च जोखिम भी उठाते हैं।
  3. टैक्स-फ्री बॉन्ड फंड्स : ये फंड म्युनिसिपल बॉन्ड्स में निवेश करते हैं, जो टैक्स-फ्री रिटर्न देते हैं। वे हाय टैक्स ब्रैकेट वालों के लिए एक अच्छा विकल्प हो सकते हैं। कई सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम टैक्स फ्री बॉन्ड जारी करते हैं। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण, एनटीपीसी लिमिटेड, भारतीय रेलवे, ग्रामीण विद्युतीकरण निगम, हाउसिंग एंड अर्बन डेवलपमेंट कॉरपोरेशन, इंडियन रिन्यूएबल एनर्जी, डेवलपमेंट एजेंसी, रूरल इलेक्ट्रिफिकेशन लिमिटेड और पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन आदि टैक्स फ्री बॉन्ड जारी करते हैं।
  4. शॉर्ट-टर्म बॉन्ड फंड : ये फंड कम मैच्योरिटी डेट वाले बॉन्ड में निवेश करते हैं, आमतौर पर 3 साल से कम। वे कम रिटर्न की पेशकश करते हैं, लेकिन लंबी अवधि के बांड फंडों की तुलना में कम जोखिम भी देते हैं।
  5. इंटरमीडिएट-टर्म बॉन्ड फंड : ये फंड इंटरमीडिएट मैच्योरिटी डेट वाले बॉन्ड में निवेश करते हैं, आमतौर पर 3 से 10 साल के बीच इनका मैच्युरिटी समय होता है। ये शॉर्ट-टर्म बॉन्ड फंड्स की तुलना में अधिक रिटर्न देते हैं लेकिन उच्च जोखिम भी उठाते हैं।
  6. लॉन्ग-टर्म बॉन्ड फंड्स : ये फंड लंबी परिपक्वता तिथियों वाले बॉन्ड में निवेश करते हैं, आमतौर पर इनका मैच्युरिटी समय 10 साल से अधिक होता है। वे ज्यादा रिटर्न प्रदान करते हैं लेकिन उच्चतम जोखिम भी उठाते हैं।
  7. लॉन्ग-टर्म बॉन्ड फंड्स : ये म्यूच्यूअल फंड लंबी परिपक्वता तिथियों वाले बॉन्ड में निवेश करते हैं, आमतौर पर 10 साल से अधिक। वे उच्चतम रिटर्न प्रदान करते हैं लेकिन ज्यादा समय और जोखिम भी लेते हैं।
  8. फ्लोटिंग रेट फंड्स : ये फंड परिवर्तनीय ब्याज दरों वाले बॉन्ड में निवेश करते हैं। वे निवेशकों को ब्याज दर के जोखिम से बचा सकते हैं और इन बॉन्ड्स का व्याज दर मुख्य रूप से RBI के व्याज दर के ऊपर निर्भर करता है ।
  9. गिल्ट फंड्स : ये फंड केंद्र सरकार द्वारा जारी सरकारी बॉन्ड में निवेश करते हैं, जिन्हें सॉवरेन बॉन्ड माना जाता है, जिसे सबसे सुरक्षित निवेश विकल्प माना जाता है।
  10. क्रेडिट रिस्क फंड्स : ये फंड उन बॉन्ड्स में निवेश करते हैं जिन्हें कम क्रेडिट क्वालिटी वाला माना जाता है। वे कई अन्य डेट फंडों की तुलना में अधिक रिटर्न देते हैं, लेकिन उच्च जोखिम भी उठाते हैं।
  11. ओवरनाइट फंड : यह फंड उन सिक्योरिटीज में निवेश करता है जिनकी परिपक्वता अवधि 1 दिन की होती है। इतनी कम मैच्युरिटी समय के कारण ओवरनाइट फंड में न्यूनतम क्रेडिट जोखिम और ब्याज दर जोखिम होता है और इसलिए इसे अपेक्षाकृत स्टेबल एसेट माना जाता है।

हाइब्रिड फंड्स

जैसे की नाम से पता चलता है की हाइब्रिड फण्ड एक मिश्रित म्यूच्यूअल फंड है जिसमें इक्विटी और डेट बांड्स आदि दोनों में निवेश किया जाता है। इक्विटी और फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटीज के बीच आवंटन फंड के उद्देश्य और फंड मैनेजर की निवेश रणनीति के आधार पर अलग-अलग हो सकता है।

हाइब्रिड फंड निवेशकों को विकास और आय का संतुलन प्रदान करता है, क्योंकि पोर्टफोलियो के इक्विटी हिस्से में पूंजी की सराहना की संभावना है, जबकि फिक्स्ड आय वाला हिस्सा आय का एक स्थिर स्रोत प्रदान करता है। वे विविधीकरण लाभ भी प्रदान करते हैं, क्योंकि पोर्टफोलियो की इक्विटी और फिक्स्ड इनकम वाले हिस्से अलग-अलग बाजार स्थितियों में अलग-अलग प्रदर्शन कर सकते हैं।

निवेश के आधार पर हाइब्रिड फंड्स के भी कुछ प्रकार होते हैं जैसे की :

  1. इक्विटी-उन्मुख हाइब्रिड फंड : इन फंडों का इक्विटी के प्रति अधिक आवंटन होता है, जो उन्हें उन निवेशकों के लिए अधिक उपयुक्त बनाता है जो ग्रोथ की तलाश में हैं।
  2. डेट-उन्मुख हाइब्रिड फंड: इन फंडों का डेट सिक्योरिटीज में अधिक निवेश होता है, जो उन्हें उन निवेशकों के लिए अधिक उपयुक्त बनाता है जो एक स्टेबल रिटर्न की तलाश में हैं।
  3. बैलेंस्ड फंड : ये फंड इक्विटी और डेट निवेश के बीच संतुलन बनाए रखते हैं।
  4. आर्बिट्रेज फंड : इन म्यूच्यूअल फंड्स का उद्देश्य विभिन्न पूंजी बाजार क्षेत्रों में समान अंतर्निहित परिसंपत्तियों के मूल्य में अंतर का फायदा उठाकर आर्बिट्रेज मुनाफा कमाना है। ये फंड डेट और मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स में भी निवेश कर सकते हैं।
  5. डायनेमिक एसेट एलोकेशन फंड : ये फंड बाजार की स्थितियों के आधार पर अपने एसेट एलोकेशन को समायोजित करते हैं, इसका मतलब है कि वे बाजार की स्थिति के आधार पर इक्विटी और डेट के बीच स्विच निवेश करते हैं, इस प्रकार रिटर्न की अस्थिरता को कम करने की कोशिश किया जाता है।

लक्ष्य के आधार पर म्यूच्यूअल फंड्स के प्रकार

मार्किट में अलग अलग लक्ष्यों को पूरा करने के लिए भी निवेश के लिए बिभिन्न प्रकार के म्यूच्यूअल फंड्स उपलब्ध हैं जैसे की :

  1. ग्रोथ फंड्स : ग्रोथ फंड एक प्रकार का म्यूचुअल फंड या एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड (ETF) है, जो मुख्य रूप से उन कंपनियों में निवेश करता है, जिनके प्रॉफिट में औसत वृद्धि होने की उम्मीद होती है। ये फंड आमतौर पर डिविडेंड देने वाली अधिक परिपक्व कंपनियों के बजाय प्रौद्योगिकी और स्वास्थ्य सेवा कंपनियों जैसी विकास की उच्च क्षमता वाली कंपनियों में निवेश करते हैं।
  2. लिक्विड फंड्स : एक लिक्विड फंड मुख्य रूप से अल्पकालिक, अत्यधिक लिक्विड डेट सिक्योरिटीज जैसे कि ट्रेजरी बिल, वाणिज्यिक पत्र और जमा प्रमाणपत्र में निवेश करता है। लिक्विड फंड का लक्ष्य निवेशकों को पारंपरिक बैंक सेविंग खाते या मनी मार्केट फंड की तुलना में अधिक रिटर्न कमाने का अपेक्षाकृत कम जोखिम वाला तरीका प्रदान करना है।
  3. इनकम फंड्स : इनकम फंड, जिसे बॉन्ड म्यूच्यूअल फंड के रूप में भी जाना जाता है, एक प्रकार का म्यूचुअल फंड या एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड (ETF) है जो मुख्य रूप से बॉन्ड और अन्य निश्चित आय वाली प्रतिभूतियों जैसे डिबेंचर, सरकारी बॉन्ड और कॉर्पोरेट बॉन्ड में निवेश करता है। इन फंडों का प्राथमिक उद्देश्य निवेशकों को नियमित ब्याज भुगतान और लंबी अवधि में पूंजी वृद्धि के रूप में आय का एक स्थिर प्रवाह प्रदान करना है।
  4. टैक्स सेविंग फंड्स : ELSS या इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम, पिछले कुछ वर्षों में, सभी श्रेणियों के निवेशकों के बीच लोकप्रिय हो रही है। वे न केवल आपको टैक्स पर बचत करने की सुबिधा देते हुए धन अधिकतम लाभ प्रदान करते हैं, बल्कि वे केवल तीन वर्षों की सबसे कम लॉक-इन अवधि के साथ आते हैं। मुख्य रूप से इक्विटी में निवेश करते हुए, वे 14-16% की सीमा में टैक्स-फ्री रिटर्न प्रोवाइड करने के लिए जाने जाते हैं।
  5. गोल्ड फंड्स : जैसे की नाम से ही पता चलता है की इन म्यूच्यूअल फंड्स में निवेश किये गए पैसों को गोल्ड में निवेश किया जाता है मुख्य रूप से गोल्ड ईटीएफ में निवेश किया जाता है और गोल्ड के भाव के साथ इनका वैल्यू बढ़ता या घटता है।

अच्छे म्यूच्यूअल फंड का चुनाव कैसे करें ?

म्यूचुअल फंड्स में लोग आमतौर पर तभी निवेश करते हैं जब उनके पास निवेश के बारे में सीखने का समय नहीं होता है और ये सही भी है मगर अपने लिए सही म्यूचुअल फंड का चुनाव करना एक कठिन काम हो सकता है क्योंकि हर म्यूचुअल फंड का अपना फायदा और नुकसान होता है तो चलिए समझते हैं इसे करने का सही तरीका।

अच्छा म्यूचुअल फंड कैसे चुनें
  • निवेश लक्ष्य : सबसे पहले अपने निवेश के लक्ष्य को चुनें जैसे की आप के निवेश का अवधि कितने समय तक होगा, लॉन्ग टर्म होगा या शॉर्ट टर्म तक होगा ।
  • रिस्क : आपको ये पता होना चाहिए की आप अपने पूंजी के ऊपर कितना रिस्क ले सकते हैं क्योंकि जहां पर रिटर्न होता है वहां रिस्क भी उतना ही होता है ।
  • एनालिसिस : निवेश से पहले उस म्यूचुअल फंड का संपूर्ण फंडामेंटल एनालिसिस जरूर करें जैसे की उसका मैनेजमेंट कैसा है, पिछले कुछ सालों से रिटर्न कैसा दे रहा है,एक्सपेंस रेश्यो कितना और एंट्री या एग्जिट लोड कितना है आदि।

निष्कर्ष

आखिर हम आपको यह सलहा देना चाहेंगे की कभी भी किसीके कहने पर कोई भी म्यूच्यूअल फंड में पैसे ना लगाएं और पूंजी निवेश करने से पहले मार्किट की स्थिति को भी ध्यान में जरूर रखें। अगर आप कोई भी इंडेक्स फण्ड, ईटीएफ या म्यूच्यूअल फंड आदि के वारे में जानना चाहते हैं तो NSE के ऑफिसियल वेबसाइट पर जा सकते हैं या कई स्टॉक ब्रोकर एप्प में भी यह सुविधा होती है। धन्यवाद।


FAQ :

क्या म्यूचुअल फंड में पैसा डूब सकता है ?

अगर स्माल कैप फंड्स जो ज्यादा रिस्की होते हैं उनमें निवेश करते हैं या किसी म्यूच्यूअल फंड में शॉर्ट टर्म के लिए निवेश करें तो हाँ, पैसे डूबने के आसार हो सकते हैं।

म्यूच्यूअल फण्ड में कितना रिटर्न मिलता है ?

पिछले 20 सालों में लार्ज कैप म्यूच्यूअल फंड्स ने सालाना औसत 13% से 15% का रिटर्न दिया है।

म्यूच्यूअल फंड में कितना पैसा लगाना चाहिए ?

एक साधारण व्यक्ति को अपने सैलरी का कम से कम 20% हिस्सा अच्छे कंपनियों के स्टॉक्स या अच्छे म्यूच्यूअल फंड्स में लगाना चाहिए।

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नमस्कार, मेरा नाम प्रकाश कुमार नायक है, में एक लेखक और वेबसाइट डेवलपर हूँ। फाइनेंस में मेरा पिछले 3 सालों का अनुभव है और मुझे नई चीजें शिखना और कंटेंट बनाना पसंद है। आशा करता हूँ हमारे आर्टिकल्स आपकी नॉलेज को ग्रो करने में सहायक होंगे। यहां आने के लिए धन्यवाद।

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