
जब हम किसी कंपनी की टोटल कीमत की बात करते हैं तब हम कंपनी के मार्केट कैपिटलाइजेशन [Market Capitalisation(MCap)] को ही कंपनी का टोटल वैल्यू मानते हैं और ये सही भी है क्योंकि मार्केट कैप कंपनी का जितने शेयर होते हैं उनका समुदाय मूल्य को दर्शाता है ।
पर अगर कोई उस कंपनी को खरीदना चाहे तो उसके लिए कंपनी का सिर्फ मार्केट कैप नहीं बल्कि कंपनी का एंटरप्राइज वैल्यू (Enterprise Value) को देखना पड़ता है जिससे ये पता चलता है की उस कंपनी को खरीदने के लिए टोटल कितना खर्चा करना पड़ेगा ।
एंटरप्राइज वैल्यू (EV) क्या होता है ?
सरल भाषा में समझाऊं तो एंटरप्राइज वैल्यू कंपनी का वास्तविक कीमत दर्शाता है ।
एक कंपनी का मार्केट कैपिटलाइजेशन उसके जितने भी शेयर्स होते हैं उनके टोटल मूल्य को दर्शाता है इसीलिए किसीको उस कंपनी को खरीदने के लिए कम से कम उस कंपनी के मार्केट कैप के बराबर रकम देना पड़ेगा ।
मगर उस कंपनी को खरीदने के बाद कंपनी के द्वारा लिया गया लोन की जिम्मेदारी भी आपकी होगी और आपको ही उसे चुकाना पड़ेगा और उसिके साथ साथ कंपनी के जो एसेट्स यानी संपत्ति होंगे वो सारे आपके हो जायेंगे ।
इसीलिए कंपनी को खरीदने के बाद आपको लोन को चुकाने के लिए कुछ पैसे देने पड़ेंगे और कंपनी के एसेट्स के रूप में आप कुछ संपत्ति के मालिक भी बन जायेंगे जिन्हे आप बाद में चाहे तो बेच सकते हैं ।
तो कंपनी को खरीदने के बाद कुछ फायदा भी हुआ और कुछ नुकसान भी, तो फिर कंपनी को खरीदने का टोटल खर्चा कितना आया उसकी अमाउंट को जानने के लिए कंपनी का एंटरप्राइज वैल्यू (Enterprise Value) निकाला जाता है जोकि एक सही आंकड़ा दिखाता है की कोई कंपनी की असली कीमत क्या है और उस कंपनी को खरीदने के लिए कितना रकम चुकाना पड़ेगा ।
एंटरप्राइज वैल्यू [Enterprise Value (EV)] का फॉर्मूला :
एक सरल फुरमुला के तहत कोई भी कंपनी के एंटरप्राइज वैल्यू को निकाला जा सकता है ।
Enterprise Value (EV) = Market Capitalization + Market Value of Debt + Minority Interest – Cash and Equivalents
Or
Enterprise Value (EV) = share price × Total number of outstanding shares + Total debt or Liabilities + Minority Interest – Cash and Cash equivalents
Or
EV = Common stocks + Preferred Stocks + Total Liabilities + Minority Interest – Cash and Cash equivalents
Enterprise Value (EV) से जुड़े हुए महत्वपूर्ण तत्व :
आइए Enterprise Value (EV) से जुड़े सारे key eliments को बारीकी से हिंदी में समझते हैं ।
- Market Capitalization (Market Cap)
- Common Stocks
- Preferred Stocks
- Total debt or Liabilities
- Minor Interests
- Cash and Cash equivalents
मार्केट कैपिटलाइजेशन (market capitalisation) यानी मार्केट कैप कया होता है ?
मार्केट कैप कोई भी कंपनी की मार्केट में टोटल वैल्यू यानी कंपनी के सारे शेयर्स के समुदाय मूल्य को दर्शाता है जिससे यह पता चलता है की अगर कोई कंपनी को खरीदना चाहे तो उसे मिनिमम कितना रकम देना पड़ेगा ।
चलिए इसे एक फॉर्मूला के द्वारा समझते हैं :
Market capitalisation (market cap) = Share price × Number of outstanding shares
कंपनी का एक शेयर का प्राइस और उस कंपनी के जितने भी शेयर हैं उनकी मात्रा दोनों को गुणा करने के बाद कंपनी का मार्केट कैप निकलता है ।
Common Stocks क्या होते हैं ?
Common Stock यानी साधारण स्टॉक एक सिक्योरिटी की तरह होता है जो की कंपनी में हिस्सेदारी को दर्शा ता है और इन्हे Common Shares भी कहा जाता है ।
कंपनी मालिकों और अन्य निवेशकों को कंपनी में भुगतान किए गए धनराशि के प्रमाण के रूप में Common Stocks जारी किए जाते हैं। सभी शेयर होल्डर्स में से, Common Share Holders के कंपनी की संपत्ति पर सबसे कम दावा होता है।
आप हम जैसे साधारण निवेशक स्टॉक मार्केट में कंपनियों के कॉमन स्टॉक्स में निवेश करते हैं ।
Preferred Stocks क्या होते हैं ?
Preferred Stocks को Preference shares भी कहा जाता है और कंपनी में common stock hoders के तुलना में Preferred Stock holders को ज्यादा सुविधा दिया जाता है जैसे की :
- Preferred Stock holders को एक फिक्स अमाउंट का डिविडेंड (Dividend) दिया जाता है ।
- common stock holders से पहले Preferred Stock holders को डिविडेंड (Dividend) दिया जाता है ।
- Preferred stock shareholders के पास आमतौर पर कंपनी में कोई मतदान अधिकार नहीं होता है, लेकिन आमतौर common shareholders कंपनी में होने वाले परिवर्तनों के ऊपर मतदान का अधिकार होता है ।
- अगर कभी कंपनी बिक जाता है तो हिस्सेदारी की रकम सबसे पहले Preferred stock shareholders को दिया जाता है और बाद में common shareholders को दिया जाता है।
Total debt or Liabilities :
डेट (Debt) या लायबिलिटी (Liabilities) का मतलब वो सारे लोन होते हैं जो कंपनी के द्वारा लिए गए होते हैं ।
आम तौर पर Liabilities 2 प्रकार के होते हैं :
- Current Liability
- Non Current Liability
Current Liabilities + Non Current Liabilities = Total debt or Liabilities
Current Liability क्या होता है ?
Current Liabilities का मतलब कंपनी के द्वारा लिए गए वो सारे लोन होते हैं जिन्हें कंपनी को एक साल के अंदर चुकाना होता है ।
कंपनी के Financial Statement में Balance sheet के अंदर कंपनी के Liabilities और एसेट्स को देखा जा सकता है ।
Non Current Liability क्या होता है ?
Non Current Liabilities का मतलब कंपनी के द्वारा लिए गए वो सारे लोन होते हैं जिन्हें कंपनी को लॉन्ग टर्म टाइम पीरियड के अंदर चुकाना होता है ।
Minority Interest का मतलब क्या होता है ?
Minority Interest को एक उदाहरण से समझते हैं :
मान लो 2 कंपनियां हैं A और B । कंपनी A के मालिक ने कंपनी B के 51 % शेयर खरीद लिए और 49 % शेयर दूसरे मालिक के पास है तो ज्यादा शेयर होने की वजह से कंपनी A का मालिक कंपनी B का भी मालिक बन जायेगा और कंपनी B का सारा कंट्रोल कंपनी A के मालिक के पास आजाएगा ।
जहां पर कंपनी A के मालिक को कंपनी B का majority stakeholder और कंपनी B के पुराने मालिक को minority stakeholder कहा जाएगा ।
यहां पर कंपनी A को parent company और कंपनी B को subsidiary company कहा जाएगा और कंपनी B का सारा प्रॉफिट एंड लॉस कंपनी A के प्रॉफिट और लॉस के साथ मिलाकर दिखाया जाएगा ।
तो इसीलिए अगर कंपनी भी ने ₹100 प्रॉफिट कमाए तो उसका 49% हिस्सा यानी ₹49 कंपनी B के minority stakeholder के पास जायेगा जिसे Minority Interest कहा जाता है और इसीलिए कंपनी के वैल्यूएशन के वक्त Minority Interest को माइनस करना जरूरी होता है ।
कंपनी के Annual Report के Balance sheet में कंपनी का Minority Interest दर्ज होता है ।
Cash :
यहां कैश का मतलब वो पूंजी होता है जिसे कंपनी के संचालन के लिए कंपनी के द्वारा रखा गया होता है तो जैसे की कंपनी के Reserved Funds जिसे की कंपनी के भविष्य में खर्चे के लिए रखा गया होता है और को कंपनी खरीदने के बाद ये सारे पैसे उस नए मालिक के हो जाते हैं ।
कंपनी खरीदने में जितना खर्चा होता है Cash मिलने के वजह से इसे कुछ रकम वापस मिल जाते हैं इस वजह से कैश को माइनस किया जाता है ।
Cash equivalents क्या होते हैं ?
Cash equivalents का मतलब कंपनी के वो सारे एसेट्स यानी संपत्ति या प्रॉपर्टी होते हैंं जो की कंपनी खरीदने के बाद नए मालिक के हो जाते हैं और वो अगर चाहे तो उन एसेट्स को बेच का भी लोन को चुका सकते हैं ।
आम तौर पर करेंट एसेट्स (Current Assets) को Cash equivalents के अंदर गिना जाता है क्योंकि इन्हें एक साल के अंदर बेचा जा सकता है मगर नॉन करेंट एसेट्स (Non Current Assets) को एक साल के अंदर बेचा नहीं जा सकता है ।
चलिए एंटरप्राइज वैल्यू (EV) को एक उदाहरण से समझते हैं :
एक उदाहरण के तौर पर Reliance Industries Ltd कंपनी के साल 2022 में Enterprise Value को समझते हैं ।
Market cap | 18,87,881 cr |
Total Liabilities | 8,75,181 cr |
Minority Interest | 1,05,021 cr |
Cash | 4,68,038 cr |
Cash equivalents | 2,10,719 cr |
Enterprise Value (EV) | 21,89,326 cr |
EV/EBITDA Multiple का मतलब क्या है ?
कंपनी के एंटरप्राइज वैल्यू (EV) को एबिटडा यानी [Earning Before Interest, Tax, Depreciation and Amortization (EBITDA)] के साथ विभाजित करने के बाद कंपनी का EV/EBITDA Multiple निकलता है ।
EV/EBITDA मल्टीपल को कंपनी में निवेश करने से पहले कंपनी का एनालिसिस करने के लिए एक बहुत ही अच्छा रेश्यो माना जाता है ।
कोई भी सेक्टर के अलग अलग कंपनियों को तुलना करने के लिए EV/EBITDA मल्टीपल का उपयग किया जाता है ।
EV/EBITDA Multiple का वैल्यू ज्यादा होने का मतलब क्या होता है ?
अगर आप किसी सेक्टर के कुछ कंपनियों के EV/EBITDA Multiple को तुलना कर रहे हैं और अगर कोई कंपनी का EV/EBITDA रेश्यो का वैल्यू ज्यादा है तो इसका मतलब ये हो सकता है की कंपनी का स्टॉक प्राइस overvalued है और वहां निवेश करना एक गलत फैसला हो सकता है ।
और अगर उसके बाद भी आप उस कंपनी में निवेश करना चाहे तो बाकी सारे पैरामीटर्स को जरूर चेक करलें जिनका अच्छा होना जरूरी है ।
EV/EBITDA Multiple का वैल्यू कम होने का मतलब क्या होता है ?
अगर कोई कंपनी का EV/EBITDA Multiple बाकी कंपनियों से कम है तो उसे एक अच्छा संकेत माना जाता है जिसका मतलब होता है की कंपनी के स्टॉक्स अभी Undervalued हैं और अभी अच्छी वैल्यू में मिल रहे हैं और उस कंपनी में निवेश करना अच्छा हो सकता है ।
EV/EBITDA Multiple का वैल्यू -ve होने का मतलब क्या होता है ?
यह मीट्रिक तब भ्रमित कर सकती है जब यह -ve हो जाती है और आमतौर पर व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली मीट्रिक नहीं होती है।
एक तो यह किसी कंपनी के वित्तीय स्वास्थ्य की सटीक तस्वीर नहीं देता है यदि वे एक स्टार्टअप कंपनी हैं और दूसरा एक कंपनी अपनी कंपनी का एक हिस्सा बेच कर कैश के लोड में हो सकता है ।
EV/SALES ratio क्या होता है ?
सेल्स (Sales) का मतलब कंपनी सालभर का बिक्री से हुए रेवेन्यू को दर्शाता है और कंपनी के एंटरप्राइज वैल्यू (EV) को कंपनी के सेल्स के साथ विभाजित करने के बाद कंपनी का EV/Sales ratio निकलता है ।
EV/EBITDA Multiple की तरह EV/Sales ratio भी कंपनी के एनालिसिस में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और कोई भी कंपनी में निवेश करने से पहले उस कंपनी का EV/Sales ratio उस सेक्टर के बाकी कंपनियों के EV/Sales ratio से जरूर तुलना करना चाहिए ।
EV/Sales ratio क्या दर्शाता है ?
EV/Sales ratio की मदद से निवेशक प्रति यूनिट बिक्री के सापेक्ष लागत का बेहतर विचार प्राप्त करने में सक्षम होते हैं, जो किसी कंपनी में निवेश करने का निर्णय लेते समय आवश्यक होता है। उक्त मूल्य की गणना में, निवेशक बेहतर ढंग से समझ सकते हैं कि कंपनी Overvalued या Undervalued है ।
EV/Sales ratio कम होना एक अच्छा संकेत होता है जिसका मतलब होता है की कंपनी का स्टॉक प्राइस अभी Undervalued है जोकि आगे जाके बढ़ सकता है ।
EV/Sales ratio ज्यादा होने का मतलब होता है की कंपनी का स्टॉक प्राइस Overvalued है और उस स्टॉक में निवेश करना एक गलत फैसला हो सकता है ।
निष्कर्ष :
कंपनी एनालिसिस में एंटरप्राइज वैल्यू (EV) को समझना और EV/EBITDA और EV/Sales रेश्यो को सही से यूज करना बहुत अच्छा होता है ।
याद रखिए : सिर्फ EV/EBITDA Multiple और EV/Sales के आधार पर कंपनियों में निवेश नहीं करना चाहिए और हर एक चीज को बारीकी से जांच करने के बाद ही कोई भी कंपनी में निवेश करना चाहिए और कोई भी कंपनी के पूरे एनालिसिस को सीखने के लिए आप हमारे फंडामेटल एनालिसिस के सारे आर्टिकल्स को जरूर पढ़ें ।